क्या है राष्ट्रपति पद्प्रार्थी श्रीम. द्रौपदी मुर्मू की जीवन गाथा ?

Date:

Share post:

क्या है राष्ट्रपति पद्प्रार्थी श्रीम. द्रौपदी मुर्मू की जीवन गाथा ?

कैसे बने श्रीम. मुर्मू – एक प्रेरक व्यक्तित्व? – कुछ आलोकपात!

 

लेखक चंदन तुलसी गोस्वामी प्रदेश प्रवक्ता -पैनलिस्ट भाजपा महाराष्ट्र
लेखक चंदन तुलसी गोस्वामी
प्रदेश प्रवक्ता -पैनलिस्ट भाजपा महाराष्ट्र
चंदन तुलसी गोस्वामी,
प्रवक्ता-पैनलिस्ट (भारतीय जनता पार्टी – महाराष्ट्र)

 

समाज विकास संवाद!
मुंबई,

 

क्या है राष्ट्रपति पद्प्रार्थी श्रीम. द्रौपदी मुर्मू की जीवन गाथा ? कहाँ पर हुआ श्रीम. मुर्मू की जन्म? क्या है श्रीम. द्रौपदी मुर्मू का राजनैतिक अभिज्ञता? कैसे बने श्रीम. मुर्मू – एक प्रेरक व्यक्तित्व ? – कुछ आलोकपात!

देश के सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति पद के लिए 18 जुलाई को मतदान होना है।

उसके पूर्व भाजपा की तरफ से एनडीए कि तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू 14 जुलाई को

एक दिन के महाराष्ट्र दौरे पर  आ रही है!उसी पर विशेष आलेख!

वर्तमान राष्ट्रपती रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा होने के बाद अब देश को द्रौपदी मुर्मू के रूप में

नया राष्ट्रपति मिल सकता है। एक आदिवासी नेता से पार्षद और झारखंड की पूर्व राज्यपाल से अब

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए राष्ट्रपति पद की

उम्मीदवार- द्रौपदी मुर्मू- अपनी निजी दुश्वारियों को पार करते हुए राजनीति के सर्वोच्च सोपान पर पहुंचने की ओर

अग्रसर हैं और यदि सब कुछ ठीक रहा तो उनकी अगली मंजिल राष्ट्रपति भवन होगा।

बता दें कि इसके पहले प्रतिभा पाटिल को भारत की पहली महिला राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त हुआ था।

एक बार फिर महिला देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के एक कदम दूर हैं।

 

 

कहाँ पर हुआ श्रीम. द्रौपदी मुर्मू की जन्म?

 

कहाँ हुआ द्रौपदी मुर्मू की जन्म

द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले में 20 जून 1958 को एक आदिवासी परिवार में हुआ था।

उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था, जो अपनी परंपराओं के मुताबिक, गांव और समाज के मुखिया थे।

दौपदी मुर्मू ने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।

वह 1997 में रायरंगपुर में जिला बोर्ड की पार्षद चुनी गईं।

राजनीति में आने से पहले उन्होंने श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च,

रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षका के और सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में रूप में काम किया।

वह ओडिशा में दो बार विधायक रही हैं और नवीन पटनायक सरकार में मंत्री के रूप में काम करने का भी मौका मिला,

जब भाजपा बीजू जनता दल के साथ गठबंधन में थी।

द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

 

 

क्या है श्रीम. द्रौपदी मुर्मू का राजनैतिक अभिज्ञता?

 

क्या है श्रीम. द्रौपदी मुर्मू का राजनैतिक अभिज्ञता?

द्रौपदी को राज्यपाल के रूप में छह साल से अधिक का समृद्ध अनुभव है।

झारखंड की पहली महिला राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू हमेशा जनमानस से जुड़ी रहीं।

उनका व्यक्तित्व सरल और सहज है। वह राजभवन में सभी की समस्याओं को गंभीरता से सुनकर निदान के लिए

सक्रिय रहीं। राज्य के विभिन्न जिलों के सुदूरवर्ती गांवों तक दौरा करके लोगों से संवाद स्थापित कर लोगों को केन्द्र एवं

राज्य की विभिन्न योजनाओं के प्रति जागरूक करती रहीं। उन्होंने राज्य के आवासीय विद्यालयों की दशा में सुधार

लाने के लिए बार-बार निरीक्षण किया। कौशल विकास के उन्नयन के लिए कौशल विकास केन्द्रों का भ्रमण करती थीं।

रोजगारपरक शिक्षा की वकालत करती रहीं। कोरोना काल में लोगों को जागरूक करने पर भी उन्होंने काफी जोर दिया।

 

 

संवैधानिक गरिमा और शालीनता पूर्ण रहा श्रीम. मुर्मू का राज्यपाल की कार्यकाल!

 

द्रौपदी मुर्मू ने 18 मई, 2015 को झारखंड की राज्यपाल के रूप में शपथ लेने से पहले दो बार विधायक और

एक बार ओडिशा में मंत्री के रूप में कार्य किया था। राज्यपाल के रूप में उनका पांच साल का कार्यकाल

18 मई, 2020 को समाप्त होना था, लेकिन एक साल और बढ़ा दिया गया था,

कोविड महामारी के चलते नए राज्यपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई थी। वह आदिवासी मामलों, शिक्षा,

कानून व्यवस्था और झारखंड के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से हमेशा अवगत थीं।

कई मौकों पर उन्होंने राज्य सरकारों के फैसलों पर सवाल उठाया,

लेकिन हमेशा संवैधानिक गरिमा और शालीनता के साथ। झारखंड की राज्यपाल के रूप में उनका 6 साल से अधिक का

कार्यकाल न केवल गैर-विवादास्पद रहा, बल्कि यादगार भी रहा। अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद वह

12 जुलाई, 2021 को ओडिशा के रायरंगपुर जिले स्थित अपने गांव से झारखंड राजभवन के लिए निकली थीं और

तब से वहीं रह रही हैं। विश्वविद्यालयों की पदेन कुलाधिपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान राज्य के

कई विश्वविद्यालयों में कुलपति और प्रति-कुलपति के रिक्त पदों पर नियुक्ति हुई थी।

उन्होंने खुद राज्य में उच्च शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर लोक अदालतों का आयोजन किया,

जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकों और कर्मचारियों के लगभग 5,000 मामलों का निपटारा किया गया।

उन्होंने राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नामांकन प्रक्रिया को केंद्रीकृत करने के लिए कुलाधिपति का पोर्टल बनाया।

 

 

द्रौपदी मुर्मू की जीवन! डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम की तरह गरीबी का सामना किया श्रीम. द्रौपदी मुर्मू ने!

 

जिस तरह डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने गरीबी को झेली उसी तरह द्रौपदी मुर्मू ने भी परेशानियों का सामना किया।

दुनिया कलाम साहब की सादगी की दिवानी है तो द्रौपदी मुर्मू ने भी अपना जीवन साधारण ही रखा।

इन्हें कभी भी सुख-सुविधा और विलासिता का लालच नहीं रहा। ये हमेशा साधारण साड़ी में नजर आती हैं।

साल 2009 में जब द्रौपदी मुर्मू दूसरी बार विधायक बनीं, तो उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी और कुल जमा पूंजी

महज 9 लाख रुपए थी और उन पर तब चार लाख रुपए की देनदारी भी थी।

अब्दुल कलाम की तरह द्रौपदी मुर्मू भी एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं।

जिस प्रकार कलाम साहब को बच्चे प्रिय थे और छात्रों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे उसी तरह

द्रौपदी मुर्मू भी बच्चों से लगाव रखती हैं तभी तो राज्यपाल रहते हुए वे हमेशा स्कूलों-कॉलेजों में जाती थीं।

इसलिए कस्तूरबा स्कूलों की हालत सुधरी।

 

 

द्रौपदी मुर्मू की जीवन! अब्दुल कलाम की तरह शिक्षा के महत्व को समझती हैं!

 

द्रौपदी मुर्मू भी अब्दुल कलाम की तरह शिक्षा के महत्व को समझती हैं,

इसलिए 2016 में उन्होंने विश्वविद्यालयों के लिए लोक अदालत लगवाई और विरोध के बाद भी चांसलर पोर्टल को शुरू कराए।

इसके बाद ही विश्वविद्यालयों में नामांकन समेत दूसरी प्रक्रिया ऑनलाइन शुरू हो सकी।

वे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए भी कुलपतियों से हमेसा संपर्क में रहीं।

उन्होंने जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई को लेकर लगातार निर्देश दिए। जिसके बाद ही विश्वविद्यालयों में

लंबे समय से बंद पड़ी झारखंड की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति फिर से होने लगी।

डॉ. ए पीजे अब्दुल कलाम की तरह द्रौपदी मुर्मू अपनी विनम्रता, सरलता के लिए जानी जाती हैं।

जिस तरह डॉ. कलाम आमजन के नेता थे उसी तरह द्रौपदी मुर्मू भी सामान्य लोगों के दिलों की नेता हैं।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर 25 जुलाई 2002 को देश का राष्ट्रपति बनाया गया।

वहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2022 राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के नाम की पहल की है।

राष्ट्रपति पद्प्रार्थी द्रौपदी मुर्मू, कहाँ हुआ द्रौपदी मुर्मू की जन्म? क्या है श्रीम. द्रौपदी मुर्मू का राजनैतिक अभिज्ञता?

समाज, समाज विकास, समाज संवाद, विकास, विकास संवाद, संवाद, समाज विकास संवाद

samaj, samaj vikas, samaj samvad, vikas, vikas samvad, samvad, Samaj vikas samvad

সমাজ, সমাজ বিকাস , সমাজ সংবাদ, বিকাস, বিকাস সংবাদ, সংবাদ, সমাজ বিকাস সংবাদ

Leave a Reply

Related articles

क्या सच में बीयर नॉनवेज होती है? क्या आपके ड्रिंक में शामिल होती है मछली

क्या सच में बीयर नॉनवेज होती है? क्या आपके ड्रिंक में शामिल होती है मछली?

Hindenburg Report May Discipline Adani Group & Prosper It Further.

Hindenburg report may discipline Adani Group and prosper It further.In 2006, A renowned economic affairs expert and a very potent journalist Mr. Swaminathan S. A. Ayer researched and wrote a paper for the Cato Institute on Gujarat's new strategy of port-based development .This strategy was launched by Congress chief minister Chimanbhai Patel in the early 1990s and expanded by BJP's successors.

“सहकार मिलन” – मीरा भायंदरच्या गृहनिर्माण पुनर्विकासात सहकार भारती कडून दिशा प्रदर्शन!

“सहकार मिलन” - मीरा भायंदरच्या गृहनिर्माण पुनर्विकासात सहकार भारती कडून दिशा प्रदर्शन!आंतरराष्ट्रीय सहकार दिनाचे (११ जानेवारी) औचित्य साधून, सहकार भारती, मीरा भाईंदर जिल्हा आणिश्री सिद्धिविनायक नगर वेल्फेअर असोसिएशन यांच्या संयुक्त विद्यमाने " सहकार मिलन " या कार्यक्रमाचे आयोजन८ जानेवारी २०२३ ला श्री सिद्धिविनायक वेल्फेअर असोसिएशनच्या, सभागृहात केले होते.

क्या है आर्थिक रूप से पिछरा वर्ग की आरक्षण ? ई डब्ल्यू एस आरक्षण का लाभ किसे और कैसे मिलेगा ?

क्या है आर्थिक रूप से पिछरा वर्ग की आरक्षण ?   ई डब्ल्यू एस आरक्षण का लाभ किसे और कैसे मिलेगा ?केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार की एक ऐतिहासिक फैसले को न्यायिक वैधता देते हुएभारत की सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों अर्थात ई डब्ल्यू एस आरक्षण को न्यायिक मान्यता दिया!सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सोमवार को 3-2 के फैसले में सरकारी नौकरियों औरशैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ई डब्ल्यू एस) के लिए 10% आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा।