क्या है गुड़ी पाड़वा? ‘गुड़ी’ का अर्थ क्या है?  हिन्दू समाज में नववर्ष की शुरुआत कब से?

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क्या है गुड़ी पाड़वा? ‘गुड़ी’ का अर्थ क्या है? हिन्दू समाज में नववर्ष की शुरुआत कब से हुआ ?

कैसे मनाएं गुड़ी पाड़वा ? कियूं महत्वपूर्ण है गुड़ी पारवा? इतिहास में वर्ष प्रतिपदा!

श्री हरीश प्रभु
समाज विकास संवाद,
मुंबई!

नववर्ष उत्सव मानाते समय हमारे मन में कई प्रश्न जागता है की, क्या है गुड़ी पाड़वा? ‘गुड़ी’ का अर्थ क्या है? हिन्दू समाज में नववर्ष की शुरुआत कब से हुआ? कियूं महत्वपूर्ण है गुड़ी पारवा? कैसे मनाएं गुड़ी पाड़वा? इतिहास में वर्ष प्रतिपदा की क्या है परंपरा?

इन प्रश्नावली के उत्तर में यह जानना एवं मानना अत्यावश्यक है की भारत की सनातन हिन्दू परंपरा में नववर्ष उत्सव अति महत्वपूर्ण होता है ,

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है हिन्दू नववर्ष, भारत की पश्चिम भू भाग, विशेषतः महाराष्ट्र एवं गोवा राज्य में यह उत्सव गुड़ी पड़वा के रूप में प्रसिद्द है.

गुड़ी पड़वा (मराठी-पाडवा) के दिन हिन्दू नव संवत्सरारम्भ माना जाता है।

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है।

इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है।

कहते हैं शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं (शक) का पराभव किया।

इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।

‘युग‘ और ‘आदि‘ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘।

आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है।

इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है।

 

हिन्दू समाज में नववर्ष की शुरुआत कब से हुआ?

हिन्दू समाज में नववर्ष की शुरुआत कब से हुआ? इस प्रश्न के सन्दर्भ में प्राचीन मान्यता है!

कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था।

इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है।

इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं।

चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं।

शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है।

जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है।

इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारम्भ माना जाता है।

 

क्या है गुड़ी पाड़वा? कैसे मनाएं गुड़ी पाड़वा ?

जब भी मन में यह प्रश्न जागता है की कैसे मनाएं गुड़ी पाड़वा? तव हमे बिभिन्न राज्य की परंपरागत उत्सव पध्वती की अवलोकन करने पर दीखता है की –

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है।

सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं।

‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की।

 

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा कहा जाता है।

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा कहा जाता है।

वर्ष के साढ़े तीन मुहूतारें में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।

इस अवसर पर आंध्र प्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/प्रसादम‘ तीर्थ के रूप में बांटा जाता है।

कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है।

इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं।

महाराष्ट्र में पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं वे हैं–गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम।

गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं।

यूँ तो आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है,

किन्तु आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है।

नौ दिन तक मनाया जाने वाला यह त्यौहार दुर्गापूजा के साथ-साथ, रामनवमी को राम और सीता के विवाह के साथ सम्पन्न होता है।

 

सनातन समाज विकास की इतिहास में वर्ष प्रतिपदा की क्या है परंपरा?

सनातन समाज विकास की इतिहास में वर्ष प्रतिपदा की क्या है परंपरा?

कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से शिक्तशाली शत्रुओं को पराजित किया।

इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ।

कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई।

बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (ग़ुड़ियां) फहराए।

आज भी घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है।

इसीलिए इस दिन को गुड़ीपडवा नाम दिया गया।

इसी प्रतिपदा के दिन आज से 2078 वर्ष पूर्व उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की।

उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा।

 

महाराजा विक्रमादित्य ने सनातन भारतीय समाज की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की।

महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2078 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की।

साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई।

उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला।

महाराजा विक्रमादित्य ने सनातन भारतीय समाज की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की।

सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया।

इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया।

यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है।

इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया।

आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धाíमक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है।

यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है।

हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।

सन 78 में हूण वंश के सम्राट कनिष्क ने अपने राज्यारोहण के समय चैत्र शु. प्रतिपदा के दिन शक संवत शुरू किया था ।

 

क्या है गुड़ी पाड़वा? पुराण के अनुसार वर्ष प्रतिपदा!

पुराण के अनुसार वर्ष प्रतिपदा!

ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन

मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक

माँ दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्‍भ

युगाब्‍द (युधिष्‍ठिर संवत्) का आरम्‍भ तथा उनका राज्याभिषेक

उज्‍जयिनी सम्राट- विक्रमादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्‍भ

शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग) का प्रारम्‍भ

महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना का दिवस

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्‍थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्‍मदिवस

सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव जी के जन्म दिवस

सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल का प्रकट दिवस!

 

नव वर्ष का प्रारम्भ प्रतिपदा से ही क्यों?

नव वर्ष का प्रारम्भ प्रतिपदा से ही क्यों?

भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है।

आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है।

इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है।

हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं,

ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है।

हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है।

प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है।

ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की।

यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।

 

समाज विकास हेतु कियूं महत्वपूर्ण है वर्ष प्रतिपदा अथवा गुड़ी पारवा?

समाज विकास हेतु कियूं महत्वपूर्ण है वर्ष प्रतिपदा अथवा गुड़ी पारवा?

आज भी भारत में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं।

यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धर लेती है।

प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है।

मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है।

वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है।

प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।

 

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  1. […] समाज विकास साठी सेवा व समर्पण चे मुर्तिमंत उदाहरण म्हणजे पंतप्रधान नरेंद्र मोदी, ज्यानी योग साठी पुढाकार – म्हणजे ‘आंतरराष्ट्रीय योग दिवस’, समाज विकास साठी मन की बात, विकास साठी सेवा व समर्पण-स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ अभियान सहित अनेक दिग्दर्शी उपक्रम राबवले। आपल्या या संपूर्ण कार्यकाळात पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांच्या नेतृत्वातील भाजपप्रणित एनडीए सरकारनं देशात क्रांतीकारी व सामाजिक परिवर्तन घडवून आणणारे चांगले उपक्रम राबवले। भारतीय राजकारणात हे उपक्रम दिशादर्शक व सामान्य माणसाच्या जीवनात अमुलाग्र बदल घडवून आणण्यात महत्वपूर्ण बदल म्हणून गणले गेले। याच उपक्रमांचा सेवा व समर्पण अभियान अंतर्गत पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांच्या राजकीय कारकीर्दीला 20 वर्षे पुर्ण होत असतांना आपण आढावा घेणार आहोत। […]

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